सोमवार व्रत कथा – भगवान शिव की पावन कथा और सोमवार व्रत का महत्त्व

सोमवार व्रत की कथा-  शिव ही सत्य है, शिव ही सर्वदा! आज हम जिस विषय के बारे में चर्चा करेंगे मैं बहुत ही विशेष और महत्वपूर्ण विषय है, अर्थात भगवान शिव के सबसे पवित्र व्रत की कथा के विषय में आज हम चर्चा करेंगे! जो भी मनुष्य सोमवार का व्रत रखता है उसका व्रत तभी संपूर्ण माना जाता है जब वह मनुष्य भगवान शिव के इस व्रत की कथा के विषय में सुनता और पढ़ता है! पौराणिक मान्यता के अनुसार इस कथा का श्रवण करने से मनुष्य अपने सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं! कथा का श्रवण करने से पहले व्रत में की जाने वाली विधियां संपूर्ण कर ले उसके पश्चात भगवान शिव की इस कथा का श्रवण करें!  

सोमवार व्रत कथा – शिव ही सत्य हैं, शिव ही सर्वदा

सोमवार व्रत कथा
सोमवार व्रत कथा

-धनवान पर संतानहीन साहूकार की चिंता

संपूर्ण कथा – किसी नगर में एक बहुत ही धनवान साहूकार रहता था, जिसके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी! परंतु उसकी कोई सुनता नहीं थी, मैं इसी चिंता में दिन-रात सोचता रहता था! वह पुत्र की कामना के लिए प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का व्रत और पूजन किया करता था और शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने दीपक जलाया करता था! उसके इसी भक्ति भाव को देखकर एक समय देवी श्री पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा कि महाराज, यह साहूकार आपका अत्यंत प्रिय भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बहुत ही श्रद्धा और लगन से करता है! इसकी विशेष मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए!

सोमवार व्रत में क्या खाएं और क्या नहीं

भगवान शिव ने कहा – हे देवी पार्वती ! यह संसार कर्म क्षेत्र है! मनुष्य खेत में जैसा बीज होता है वैसा ही फल उसे काटना पड़ता है! इस तरह इस संसार में जैसे कर्म करते हैं वैसा ही फल भोगते हैं! देवी पार्वती जी ने अत्यंत आग्रह से कहा – महाराज, जब यह आपका अत्यंत प्रिय भक्त है और अगर उन्हें किसी प्रकार का दुख है तो उसे अवश्य ही दूर करना चाहिए, क्योंकि आप दयालु है और सदैव अपने भक्तों के दुखों को दूर करते हैं! पार्वती जी के इस तरह आग्रह करने पर भगवान शिव जी कहने लगे हे देवी पार्वती, इसकी कोई संतान नहीं है, और यह भक्त दिन रात इसी चिंता में रहता है! इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इन्हें पुत्र प्राप्ति का वर देता हूं! परंतु इनकी यह संतान के कुल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगी, उसके पश्चात यह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा!

संतान प्राप्ति और सीमित उम्र का रहस्य

भगवान शिव की इतनी बात सुनकर साहूकार को न अधिक प्रसन्नता हुई न अधिक दुख हुआ! वह जैसे पहले भगवान शिव की पूजा किया करता था उसके पश्चात भी वैसे ही उनका व्रत और पूजन करता रहा ! कुछ में के पश्चात साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसके गर्भ से अपनी सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई! साहूकार के घर में बहुत ही खुशियां मनाई गई, परंतु साहूकार ने उसकी केवल 12 वर्ष की आयु जानकर अत्यधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और ना ही यह भेद किसी को बताया! जब वह पुत्र 11 वर्ष का हो गया तो साहूकार की पत्नी ने अपने पुत्र के विवाह आदि के लिए कहा तो साहूकार कहने लगा कि अभी मैं इसका विवाह नहीं करूंगा! अपने पुत्र को काशी जी पढ़ने के लिए भेजूंगा, उसके पश्चात साहूकार ने अपने साले को बुलाकर उसको बहुत सा ध्यान देकर कहा कि तुम इस बालक को काशी जी बनने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस जिस स्थान पर रुकते जाओगे वहां पर यज्ञ करवाते जाना और ब्राह्मणों को भोजन करवाते जाना !

बालक और बालक के मामा यज्ञ करते हुए और ब्राह्मणों की सेवा करते हुए जा रहे थे! रास्ते में उनको एक शहर पड़ा, उसे शहर में राजा की कन्या का विवाह हो रहा था, और जिस राजा का लड़का जो विवाह करने के लिए बारात लेकर आया था वह एक आंख से काना था! राजकुमार के पिता नहीं अपने पुत्र के एक आंख से कान्हा होने की बात को छुपाने का सोचा एवं साहूकार का पुत्र जो काशी जी पढ़ने के लिए जा रहा था उसे दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करने के लिए विवश किया! विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा! साहूकार के पुत्र को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया! लेकिन साहूकार का पुत्र बहुत ही ईमानदार था, उन्हें यह बात स्वीकार नहीं थी इसलिए विवाह के पश्चात उन्होंने राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है लेकिन जी राजकुमार के साथ तुम्हें विदा करेंगे वह एक आंख से काना है! मैं तो काशी जी पढ़ने जा रहा हूं, जब राजकुमारी ने अपने दुपट्टे पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई! राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया, और बारात वापस चली गई!

घर वापसी और पुनः मिलन

दूसरी और साहूकार का लड़का और उसकी मां काशी जी पढ़ने के लिए पहुंचे, वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया! जिस दिन साहूकार का लड़का 12 साल का हुआ उसे दिन भी वहां पर यज्ञ का आयोजन था, तब लड़के ने अपने मामा से कहा कि आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है! लड़के के मामा जी ने कहा कि तुम अंदर जाकर आराम करो! परंतु लड़के की तबीयत खराब होने के पीछे विशेष कारण था क्योंकि शिव जी के वरदान अनुसार जब मैं बालक 12 वर्ष का हो जाएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी! तबीयत खराब होने के पश्चात कुछ ही देर में उसे बालक के प्राण निकल गए! मृत भांजे को देखकर उसके मामा ने विलाप करना शुरू कर दिया! संयोग से इस समय शिवजी और माता पार्वती भ्रमण करते हुए पृथ्वी लोक पर जा रहे थे! तभी देवी पार्वती जी ने भगवान शिव जी से कहा स्वामी, कोई दुखियारा रो रहा है, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे हैं, आप अवश्य ही इस व्यक्ति के कष्ट को दूर करें!

जब शिवजी और माता पार्वती जी उसे बालक के समीप पहुंचे तो उन्होंने देखा कि यह उसी साहूकार का पुत्र है जिसे मैं 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था! अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है परंतु देवी पार्वती ने माता भाव से भगवान शिव जी से आगे किया कि इस बालक को और आयु देने की कृपा करें, अन्यथा इसके माता-पिता भी इसकी मृत्यु के वियोग में मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे! माता पार्वती के पुनः आग्रह करने पर भगवान शिव ने उसे लड़के को पुनः जीवित होने का वरदान दिया! शिवजी की कृपा से लड़का जीवित हो गया और अपनी शिक्षा पूरी करके अपने नगर की ओर वापस चल दिया! वापस जाते हुए वह इस नगर में पहुंचे जहां राजकुमारी का विवाह उसके साथ हुआ था! वहां पर यज्ञ का आयोजन किया गया, लड़की के पिता ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसके खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया!

साहूकार और उसकी पत्नी बिना अन्न जल ग्रहण किए हुए अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे! उन्होंने प्रण किया हुआ था यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह अपने प्राण त्याग देंगे! परंतु जब उन्होंने अपने बेटे को जीवित देखा तो वह अत्यधिक प्रसन्न हुए! उसी रात भगवान शिव जी ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहां, कि है मेरे प्रिय भक्त, मैं तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को पुनः जीवित कर उसे लंबी उम्र का वरदान दिया है! इसी बात से प्रसन्न होकर साहूकार में भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना निरंतर जारी की!

सोमवार व्रत कथा का फल और महत्व

इसी प्रकार से जो भी मनुष्य सोमवार का व्रत करता है और सच्चे हृदय से भगवान शिव जी की पूजा करता है तथा उसके पश्चात कथा का श्रवण करता है या पढ़ता है, उसके सभी दुख दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की कृपा से संपूर्ण होती है!

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